देवघर के साइबर ठग पूरे देश के बैंक खाताधारकों को चूना लगा रहे हैं। एक समय फोन काल कर ठगी करने वाले ठग अब तकनीक के सहारे वारदातें कर रहे। अब उन्होंने गूगल एड को अपना हथियार बनाया है। गूगल को वांक्षित रकम अदा कर ऐसी जुगत कर रहे कि उनकी वेबसाइट सबसे ऊपर दिखे। ताकि उसे देखकर लोग क्लिक करें और फंस जाएं। देवघर पुलिस ने ठगी के इस मायाजाल के बारे में गृह मंत्रालय के इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर व झारखंड के सीआइडी एडीजी को रिपोर्ट दी है।
इसमें कहा है कि साइबर ठग गूगल एड का दुरुपयोग कर रहे हैं। वहां फर्जी लिंक व वेबसाइट बना ठगी कर रहे। अबाउट मी, स्विचहिट, ब्लिंक मी, इनाम जीतो, डिजिटल क्विक सर्विस डाॅट नेट, ऑन यूनिवर्स डाॅट काॅम, लिंक मी, जुड़ो मी, शाप लिंक आदि पर अपना पेज बनाते हैं। इस पेज पर जो जाता है, उसका डाटा ठग के पास पहुंच जाता है, क्योंकि वह अपने मेल अकाउंट व पासवर्ड से ही उसमें प्रवेश करता है। इसी डाटा से उससे ठगी कर ली जाती है। रिपोर्ट में लिखा है कि आम तौर पर लोग ईमेल आइडी या फिर मोबाइल नंबर की मदद से अपने जीमेल पर लाॅग इन करते हैं। साइबर ठग रैंडम तरीके
से मोबाइल नंबर डालकर भी लोगों के जीमेल को खोलने का प्रयास करते हैं, क्योंकि बहुत से लोग अपना मोबाइल नंबर ही पासवर्ड के तौर पर डाल देते हैं। ऐसे में साइबर ठग कई बार आसानी से दूसरे का मेल एक्सेस करने में सफल हो जाते हैं। फिर उनके बारे में सारी जानकारी हासिल कर ठगी करते हैं। ठग फर्जी नंबर डालकर ओटीपी हासिल कर ईमेल आइडी बनाते हैं। फिर उसकी मदद से वेबसाइट बनाकर ठगी करते हैं। अपने वेब पेज को साइबर ठग ऐसा पेज बनाते हैं कि देखने में बिलकुल असली कंपनी जैसा नजर आए। इसमें सारी फर्जी जानकारियां डाली जाती हैं। इसके लिए ही गूगल एड सर्विस का सहारा लिया जाता है।
पेज को करते लगातार अपडेट
ठग उक्त पेज को लगातार अपडेट करते रहते हैं और नई-नई भ्रामक जानकारी डालते रहते हैं। इससे लोग आसानी से धोखा खा जाते हैं। वे दूसरे के अकाउंट में जाकर भी छेड़छाड़ कर देते हैं। लोगों को इनाम देने, रिफंड देने, किसी वस्तु की खरीद में डिस्काउंट देने के नाम पर चूना लगा देते हैं। इन एड के लिए गूगल के साथ पैसे का लेन-देन भी फर्जी वालेट के जरिए करते हैं, जिस कारण आसानी से पकड़े नहीं जाते।
हर क्लिक पर ठग अदा करता रकम
नौबत ये है कि किसी को झांसे में लेने के लिए भी साइबर ठग लंबी साजिश रचते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, जब भी कोई व्यक्ति साइबर ठग के उस वेब पेज पर क्लिक करता है तो जालसाज के खाते से सात से 12 रुपये तक कट जाते हैं, लेकिन इन्हें लाभ यह होता है कि सर्चलिस्ट में सबसे ऊपर इन जालसाजों की वेबसाइट ही नजर आती है। ऐसे में लोग आसानी से उनके झांसे में आ जाते हैं। कई बार लोग साइबर अपराधियों द्वारा दिए गए नंबर को किसी कंपनी कस्टमर केयर नंबर समझकर फोन करते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं।
ऐसे बचाएं खुद को
किसी भी कंपनी की आधिकारिक साइट पर ही जाएं। उसके बारे में ठीक से पहले पता कर लें। उसकी कस्टमर केयर सर्विस के बारे में जानकारी हासिल कर लें। जिस भी लिंक या पेज पर एड नजर आए उससे बचें। वेबसाइट को खोजते वक्त काफी सावधान रहें। किसी को ओटीपी या फिर गोपनीय कोड की जानकारी ना दें, क्योंकि जो सही कंपनी होती है, उसका कस्टमर केयर प्रतिनिधि कभी ओटीपी या फिर गोपनीय कोड के बारे में नहीं पूछता। साथ ही जब भी कंपनी की वेबसाइट को खोलते हैं तो ध्यान रखें कि कंपनी की यह आइडी सुरक्षित है या नहीं।
इस सबंध में देवघर के साइबर डीएसपी सुमित प्रसाद बताते हैं कि गूगल महज एक सर्च इंजन है, जो किसी चीज के बारे में पूछने पर सर्वर पर उपलब्ध उससे जुड़े सभी डाटा को आपके सामने रख देता है। इसमें व्यावसायिक दृष्टिकोण से एड सबसे ऊपर होते हैं। अब क्या सही है और क्या गलत, इसकी पुष्टि गूगल नहीं करता। यह देखना और समझना हमारा और आपका काम है। इसलिए किसी भी वेबसाइट का उपयोग करते वक्त काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि गूगल से जुड़ी ठगी के बारे में इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर एमएचए दिल्ली व सीआइडी को पत्र लिखा गया है।