Friday, November 1, 2024

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जलवायु परिवर्तन से झारखंड में खाद्य संकट ! पढ़िए क्या है |

World Environment Day 2022: गेहूं के उत्पादन पर असर
गेहूं के उत्पादन पर असर|

 

जलवायु परिवर्तन का खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर पड़ने लगा असर

झारखंड में जलवायु परिवर्तन का खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर धीरे-धीरे असर होना शुरू हो गया है. अगर अब भी हम सभी सजग नहीं हुए तो भविष्य में खाद्य संकट से जूझना पड़ सकता है. झारखंड के वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक व बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से निदेशक (अनुसंधान) के पद से सेवानिवृत हो चुके डॉ ए वदूद प्रभात खबर डॉट कॉम के गुरुस्वरूप मिश्रा से खास बातचीत में कहते हैं कि तापमान में बढ़ोत्तरी का असर पड़ना तय है. पिछले 100 वर्षों में करीब 1 डिग्री औसत तापमान में वृद्धि हो गयी है. ये अच्छे संकेत नहीं हैं. पहले 40-45 डिग्री तापमान राज्य में एक या दो दिन होता था. अब कई दिनों तक ऐसा तापमान रह रहा है. ऐसे में हमें सतर्क होने की जरूरत है.

खाद्य पदार्थों के उत्पादन में 5-10 फीसदी का अंतर

झारखंड में जलवायु परिवर्तन का खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर असर की बात करें तो डॉ ए वदूद कहते हैं कि ये आंकड़ा फिलहाल करीब 5-10 फीसदी तक कहा जा सकता है. धीरे-धीरे तापमान में बढ़ोत्तरी से ये आंकड़े बढ़ेंगे. इसलिए झारखंड खाद्य संकट से नहीं जूझे, इसके लिए अभी से अलर्ट होना होगा. इसके प्रति लापरवाही के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

रबी फसलों के उत्पादन पर पड़ रहा प्रभाव

झारखंड में खरीफ फसलों के उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है, लेकिन रबी फसलों के उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ रहा है. खासकर गेहूं के उत्पादन पर क्लाइमेंट चेंज का असर साफ दिख रहा है. आपको बता दें कि झारखंड में 3 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती है. 28 लाख हेक्टेयर भूमि में खरीफ की फसलें होती हैं. 9 लाख हेक्टेयर में रबी की खेती होती है. 18 लाख हेक्टेयर भूमि में सिर्फ धान की खेती की जाती है. 38 लाख हेक्टेयर यहां कुल कृषि योग्य भूमि है. डॉ ए वदूद कहते हैं कि किसानों को दो फसली खेती करनी होगी. सिंचाई के अभाव में यहां एक फसली खेती की जाती है.

 

 

 

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