Friday, November 1, 2024

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झारखंड : 90 हजार करोड़ रुपए के पार पहुंचा हेमंत सरकार पर लोन

झारखंड सरकार के कर्ज की राशि 90 हजार करोड़ के पार पहुंच गई है। यह राशि इतनी अधिक है कि झारखंड में जन्म लेने वाले बच्चे के माथे पर भी एक झारखंडी के रूप में लगभग 23 हजार का कर्ज होगा। प्रदेश के लगभग चार करोड़ नागरिकों के लिए ऐसी स्थिति है। हालांकि कोरोनाकाल में खस्ताहाल खजाना होने के बाद भी हेमंत सरकार ने केवल छह हजार करोड़ कर्ज लिए हैं।

कर्ज की इस भारी-भरकम राशि का पाला झारखंड के नागरिकों को 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण और 2021-22 के लिए पेश होने वाले बजट में होने वाला है। कर्ज झारखंड के बजट पर सबसे बड़ा बोझ साबित होने वाला है। राज्य की अर्थव्यवस्था को इससे पार पाने की चुनौती है। हालांकि झारखंड सरकार के अधिकारी कर्ज को विकास के लिए जरूरी मानते हैं।

झारखंड के माथे पर बोझ बनी इस कर्ज राशि को कानूनी दायरे की सीमा के तहत भी बताते हैं। इसके लिए हाल ही में भारत सरकार की ओर से सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में बढ़ाए गए कर्ज के अनुपात का हवाला देते हैं। साथ ही वास्तविक कर्ज 70 हजार करोड़ के आस-पास और बारी राशि पीएल एकाउंट या दूसरी बुक ट्रांसफर प्रक्रिया में होने का भी तर्क दिया जाता है ज्ञात हो कि झारखंड की अर्थव्यवस्था के आकार के लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ के होने का अनुमान जताया जाता है। ऐसी स्थिति में झारखंड की कर्ज राशि 27 फीसदी के पार है। 

हर दिन चुकाना है 19 करोड़ सूद
झारखंड सरकार की ओर से लिए गए कर्ज का सूद हर साल छह हजार करोड़ से अधिक चुकाना पड़ता है। हर दिन के हिसाब से यह राशि लगभग 19 करोड़ है। ये कर्ज विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक, नाबार्ड, हुडको और भारत सरकार की दूसरी एजेंसियों के हैं।

क्या है नुकसान
सालाना 6000 करोड़ से अधिक सूद चुकाने में चला जाता है। इस राशि से इन्फ्रास्ट्रक्चर या जनकल्याण के बड़े काम हो सकते हैं। दूसरी ओर कर्ज के भरोसे अर्थव्यवस्था चलाने से सरकारी तंत्र में फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

क्यों बढ़ रहा है कर्ज
– सरकार के राजस्व उगाही के स्रोत बहुत कम  हैं। इसकी तुलना में हर साल बजट का आकार बढ़ता जा रहा है। इस घाटे को पाटने के लिए लोन लेना पड़ता है।
– प्रदेश में पर्याप्त निवेश नहीं होने के कारण तीव्र कारोबारी विकास नहीं हो रहा है। इससे कर की कम प्राप्ति होती है।
– कृषि उत्पादन कम होने के कारण प्रदेश में कृषि अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो रहा है।
– बिजली निगम जैसी कंपनियों के घाटे में चलने के कारण उन्हें कर्ज लेना पड़ता है।
– सरकार में कई जगह फिजूलखर्ची दिखती है। कई अनावश्यक निर्माण भी हुए हैं।

क्या है समाधान
– सरकार सबसे पहले कर उगाही के नए स्रोत विकसित करे। इसकी पूरी योजना तैयार करे।
– प्रवेश में पर्याप्त निवेश लाया जाए। इससे कारोबार बढ़ेगा और कर प्राप्ति बढ़ेगी।
– प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ाया जाए।
– प्रदेश में कई सार्वजनिक उपक्रमों का विकास किया जाए। इनसे सरकार का राजस्व बढ़ेगा।
– संपत्ति कर और पेशा कर की उगाही का व्यवस्थित तंत्र बनाया जाए।
– सरकार में मितव्ययिता को बढ़ावा दिया जाए। फिजूलखर्ची रोकी जाए।
– कई सुविधाओं को निजी कंपनियों के हवाले कर उनसे प्राप्त होने वाले राजस्व को बढ़ाया जाए।

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